ब्रज में एक लोकोक्ति बहुत प्रसिद्ध है – “हलुआ में हरि बसत हैं, घेबर में घनश्याम। मक्खन में मोहन बसैं, रबड़ी में श्री राम।। यहां बात हो रही है भगवान की खान-पान से संबंधित रुचियों की। और, यदि भगवान के खान-पान की बात चले तो सबसे पहले याद आता है ‘छप्पन भोग’...

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प्रशांत किशोर एक बेहतरीन विश्लेषक हैं लेकिन क्या वह कोई राजनीतिक आंदोलन खड़ा करने की कुव्वत रखते हैं…, बता रहे हैं प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी।

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मशहूर साहित्यकार और नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ एक बार किसी क्लब में अपना छाता भूल गए। अगले दिन जब उन्हें पूछताछ के बाद भी छाते का कोई सुराग नहीं मिला तो उन्होंने क्लब के मुख्य कक्ष में एक सूचना लिखकर दीवार पर चिपका दी कि जो कोई भी कुलीन पुरुष मेरा छाता ले गए हों, कृपया मुझे वापस कर दें।

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अरुण गोविल के राजनीति में आगमन से मेरठ संसदीय सीट का चुनाव काफी रोचक हो गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के राजेन्द्र अग्रवाल ने इस सीट पर बहुत कम वोटों के अन्तर से विजय प्राप्त की थी और तब यह चुनाव मात्र हिन्दू-मुस्लिम के मध्य होकर ही रह गया था।

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अकबर इलाहाबादी के समकालीनों का कहना है कि उनमें जिंदादिली इस कदर समाई हुई थी कि विकट परिस्थितियों में भी हास-परिहास का वातावरण पैदा कर देते थे और अपने रंगों से सबको सराबोर कर देते थे...

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इस बार के लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार में मुस्लिम-यादव गठजोड़ कितना कामयाब हो सकता है, बता रहे हैं प्रख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार पारस नाथ चौधरी।

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शहरीकरण के मौजूदा दौर में हर चीज प्रदूषित होती चली जा रही है। आपको अचानक से खुजली होने लगे या चकत्ते पड़ जाएं तो समझ लीजिए कि कोई ऐसी चीज आपके सामने मौजूद है जिससे आपको एलर्जी हो रही है...

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आज के समय में एलर्जी एक बड़ी समस्या है और बदलते मौसम के साथ यह अतिसंवेदनशील होती चली जाती है। बदलते खानपान की वजह से कई लोग इसके शिकार हैं। जो लोग इससे पीड़ित हैं, उनकी कार्यक्षमता पर इससे काफी असर पड़ता है। यहां हम आपको एलर्जी के पांच प्रमुख लक्षण बता रहे हैं...

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राजनीतिक रूप से बिहार में बीते पांच साल काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। इस दौरान बिहार की जनता ने नीतीश कुमार की बीजेपी व राजद जैसे विपरीत स्वभाव वाले दलों के साथ सरकारें देखीं। लेकिन, मौजूदा समय में बिहार में एक नए तरह का 'आशावाद' दिखाई दे रहा है।

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भारत का तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनना अब उतना मुश्किल नहीं लग रहा है। अगले पांच वर्षों में यह पूरी तरह सम्भव लगता है। भारतीय अर्थव्यवस्था से ऊपर के दो पायदानों पर फिलहाल जापान व जर्मनी विराजमान हैं। इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था की वार्षिक वृद्धि दर एक से दो फीसदी के बीच है जबकि भारत में यह अनुमान 7.6 फीसदी का है। स्पष्ट है कि यह दर हासिल करना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है।

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